यह तुम ही हो प्रेमपरक कविताओं का संग्रह है, साथ ही इसमें प्रेरक कवितायें भी शामिल है।
किशोर मन में प्रेम की प्रथम अनुभूति उसके हृदय में सुन्दर स्वप्नों की सृष्टि ही नहीं करती,अपितु उस प्रेम पात्र की प्राप्ति हेतु उसमें अदम्य साहस और उत्साह भी भर देती है, जिसके वशीभूत होकर वह सृष्टि की बडी से बडी बाधा को भी चींटियों के दल की भांति रौंदता हुआ अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता रहता है।
इस प्रकार प्रेम और कर्म साथ - साथ चलते हैं। प्रेम के माध्यम से वह अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है और प्रेम पात्र की प्राप्ति के लिये उसी प्रेम से प्रेरित होकर कर्म करता है।
यह पुस्तक प्रेम की गहन अनुभूतियों को भावातिरेक और सुन्दरता से चित्रित करती है।